जनता की बेहतरी के लिए उठाए जा रहे सुधार के कदम

नीमराणा में जापानी औद्योगिक पार्क की सफलता के बाद राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे राज्य में दक्षिण कोरिया, चीन, रूस और कनाडा के निवेशकों के लिए भी अलग से विशेष पार्क बनाना चाहती हैं। क्या हैं राजस्थान को लेकर उनकी योजनाएं, साहिल मक्कड़ ने उनसे इस बारे में बात की। उनसे बातचीत के अंश :

आपने हाल में रूस जाकर वहां के उद्यमियों को राजस्थान में निवेश का न्योता दिया है। क्या राज्य सरकार रूसी निवेश के लिए खास क्षेत्र देख रही है?

भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार में, खास तौर पर पर रूस और राजस्थान के व्यापारिक रिश्तों में असीम संभावनाएं हैं। अपने दौरे में मैंने सहयोग के संभावित क्षेत्रों पर चर्चा की। रूस और राजस्थान बुनियादी ढांचा, खनिज उत्खनन, शहरी नियोजन, प्रदूषण नियंत्रण, रक्षा विनिर्माण, भारी मशीनरी और इंजीनियरिंग क्षेत्रों में साझेदारी बढ़ा सकते हैं। इस साल नवंबर में जयपुर में होने वाले ग्लोबल एग्रीटेक समिट में भी हम रूसी कंपनियों के भाग लेने की उम्मीद कर रहे हैं। रशियन चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्रीज का प्रतिनिधिमंडल जल्द ही यहां का दौरा करने वाला है।

विदेशी निवेश के लिहाज से राजस्थान को मुफीद ठिकाना बनाने के लिए किस तरह के प्रयास हो रहे हैं?

हमारी कोशिश है कि देसी और विदेशी निवेश दोनों लिहाज से राजस्थान को आकर्षक स्थल के रूप में विकसित किया जाए। राजस्थान को औद्योगिक निवेश का अगुआ बनाने के लिए ‘टीम राजस्थान’ अथक प्रयास कर रही है। भारत में देश-केंद्रित विशेष क्षेत्र स्थापित करने में हम अग्रणी हैं। राजस्थान में पहले से ही जापानी और कोरियाई निवेश क्षेत्र हैं। नीमराणा में जापानी क्षेत्र की सफलता के बाद राज्य सरकार घिलोठ में तकरीबन 500 एकड़ जमीन में दूसरा औद्योगिक निवेश क्षेत्र विकसित कर रही है। जेसीबी, होंडा, हीरो मोटो कॉर्प, हैवेल्स और डैकिन जैसी दिग्गज कंपनियां पहले से ही यहां निवेश कर चुकी हैं।

किस तरह के कदम उठाए जा रहे हैं?

हमारे पास पर्याप्त जमीन और भारी मात्रा में खनिज संसाधनों के अलावा बड़ी संख्या में कुशल एवं अकुशल कामगार भी मौजूद हैं। राजस्थान दिल्ली के अलावा मुंबई और अन्य बंदरगाहों के भी नजदीक है। कं पनियों के लिए राजस्थान के भीतर और 5 पड़ोसी राज्यों में काफी बड़ा बाजार है। दिल्ली-मुंबई समर्पित मालढुलाई गलियारे और दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारे (डीएमआईसी) का राज्य को दोहरा फायदा मिलेगा। श्रमिक हितों और कारोबारी राह को सुगम बनाने में संतुलन साधने के लिए हमने औद्योगिक विवाद अधिनियम, अनुबंधित श्रम अधिनियम और कारखाना अधिनियम में संशोधन किए हैं। राजस्थान निवेश संवर्धन योजना (रिप्स), 2014 निवेशकों को वित्तीय प्रोत्साहन और सब्सिडी पेश करती है। अगर परियोजना में 500 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश होता है या उससे 500 से अधिक नौकरियां सृजित होती हैं तो ऐसे प्रस्तावों के लिए पैकेज दिया जा सकता है।

घिलोठ में निवेश आखिरकार कब मूर्त रूप लेगा? क्या नीमराणा की तर्ज पर अन्य देशों के लिए भी इसी तरह की योजना है?

राजस्थान सरकार कोरियाई निवेश क्षेत्र बनाने की संभावनाओं पर विचार कर रही है। हमें उम्मीद है कि जमीनी स्तर पर भी निवेश आकार लेगा। हम देश आधारित कुछ और क्षेत्र स्थापित करने पर जोर दे रहे हैं। हमारा ध्यान चीन, रूस, कनाडा, इटली जैसे देशों पर भी है।

हाल में ‘रीसर्जेंट राजस्थान’ के दूसरे सम्मेलन में 3.5 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव मिले। वास्तविक निवेश के मोर्चे पर क्या प्रगति है?

राज्य सरकार का एक मजबूत निगरानी और सहूलियत तंत्र काम कर रहा है। फिलहाल प्रस्तावित परियोजनाएं अलग-अलग चरणों में हैं। करीब 70 फीसदी परियोजनाओं के लिए जमीन चिह्नित कर ली गई है, 69 फीसदी परियोजनाओं पर निर्माण शुरू भी हो गया है और 16 परियोजनाओं में उत्पादन भी आरंभ हो गया है। पिछले हफ्ते ही हमने झालावाड़ में श्री वल्लभ पित्ती समूह के एक बड़े कपड़ा संयंत्र का उद्घाटन किया, जिसे रिकॉर्ड 9 महीनों में पूरा कर लिया गया। करीब 450 करोड़ रुपये की लागत से बनी इस सूती धागा कताई मिल से सालाना 22 हजार टन उत्पादन होगा, जिससे 500 लोगों को रोजगार मिलने के साथ ही 30 हजार से अधिक किसानों को मदद मिलेगी।

स्मार्ट सिटी परियोजना के मोर्चे पर क्या प्रगति है?

केंद्र ने स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत जिन 20 शहरों का चयन किया है उनमें राजस्थान के जयपुर और उदयपुर शामिल हैं। इस सूची में जयपुर को तीसरा स्थान मिला है जबकि उदयपुर 16वें स्थान पर है। जयपुर को स्मार्ट बनाने के लिए 2401 करोड़ रुपये के निवेश का प्रस्ताव है जबकि उदयपुर के लिए 1222 करोड़ रुपये का। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत केंद्र, राज्य और संबंधित नगर निगम को 50:30:20 के अनुपात में निवेश करना है। शहरी विकास मंत्रालय ने जयपुर और उदयपुर के लिए 200 करोड़ रुपये की पहली किस्त जारी कर दी है। राय सरकार ने भी इन दोनों परियोजनाओं के लिए गठित कंपनी (एसपीवी) के बैंक खातों में जयपुर के लिए 186 करोड़ रुपये और उदयपुर के लिए 159 करोड़ रुपये जमा कर दिए हैं।

राजस्थान का वित्तीय घाटा बढ़ रहा है। ऐसे में उदय योजना के तहत बिजली कंपनियों के कर्ज का जिम्मा भी लेने के बाद आप भरपाई कैसे करेंगी?

अगर हमने बिजली कंपनियों के कर्ज की देनदारी का जिम्मा नहीं लिया होता तो वर्ष 2016-17 के लिए हमारा घाटा एफआरबीएम के 3 फीसदी लक्ष्य के आसपास ही रहता। बहरहाल हम वित्तीय घाटे को सीमाओं के भीतर ही रखने के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। हमारा ध्यान राजस्व प्राप्तियों को बढ़ाने और गैर-विकास मद में होने वाले खर्च को कम करने पर है। केंद्र सरकार ने राज्यों को उदय योजना के तहत कर्ज लेने की इजाजत दे दी है। ऐसे में राजस्थान पर पडऩे वाली अतिरिक्त वित्तीय जिम्मेदारियों के ब्याज का बोझ 5200 करोड़ रुपये के अनुमानित स्तर के आसपास ही रहेगा। रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2008-09 से ही शिक्षा पर राजस्थान का व्यय घट रहा है। राजस्थान देश के सबसे कम साक्षरता दर वाले 3 राज्यों में भी शामिल है।

वर्ष 2008-09 से कुल व्यय के अनुपात में शिक्षा पर व्यय के मामले में राजस्थान 2012-13 और 2013-14 को छोड़कर राष्ट्रीय औसत से बेहतर रहा है। हमने चालू वित्त वर्ष में शिक्षा क्षेत्र के लिए 25,155 करोड़ रुपये का आवंटन किया है जो वित्त वर्ष 2015-16 के मुकाबले 13.78 फीसदी अधिक है। स्कूली शिक्षा में सार्वजनिक और निजी भागादारी (पीपीपी) बढ़ाने के लिए मसौदा नीति तैयार की है जिसमें बजटीय आवंटन के साथ ही कॉर्पोरेट सामाजिक जवाबदेही (सीएसआर), भामाशाह योजना, मुख्यमंत्री जनसहभागिता विद्यालय विकास योजना और पीपीपी के जरिये स्कूली शिक्षा को बेहतर करने पर जोर दिया गया है।

हमने शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम में सुधारों की पहल की है। आरटीई में संशोधनों के जरिये अब राज्य सरकार को यह जिम्मेदारी दी गई है कि स्कूलों में पढऩे वाले 6 से 14 साल की उम्र तक के बच्चों का शैक्षिक स्तर उनकी कक्षा के अनुरूप हो। जब तक कोई बच्चा अपनी क्लास के लायक शैक्षणिक स्तर नहीं हासिल कर लेता है तब तक उसे अगली क्लास में नहीं भेजा जाएगा। हमने क्लास के अनुरूप पढ़ाई और मूल्यांकन का पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए संशोधन भी किए हैं। बच्चों की सीखने की क्षमता आकने के लिए पहली बार अध्यापक को जवाबदेह बनाया है। स्कूल प्रबंधन समितियों को भी सशक्त बनाया है।

राजस्थान सरकार के लिए प्राथमिकता वाले अन्य क्षेत्र कौन से हैं, उन पर कैसे ध्यान दिया जा रहा है?

स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, आधारभूत ढांचा, जल संरक्षण, कृषि और उद्योग क्षेत्र तात्कालिक तौर पर हमारी सरकार की प्राथमिकता में हैं। इसलिए सरकार ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और उपकेंद्रों के संचालन में निजी क्षेत्र के साथ हाथ मिलाया है। यहां हम जरूरी आधारभूत सुविधाएं, धन और दवाएं मुहैया कराते हैं जबकि निजी क्षेत्र डॉक्टर, नर्स और अन्य कर्मचारियों को नियुक्त करता है।

अभी प्रायोगिक स्तर पर ही राज्य के 300 ब्लॉक में यह प्रोजेक्ट चल रहा है लेकिन उसके नतीजे काफी उत्साहजनक हैं। हालांकि हम पीपीपी मॉडल पर निर्भर नहीं हैं। उदाहरण के लिए, हम पूरे राज्य में स्वामी विवेकानंद सरकारी मॉडल स्कूल बना रहे हैं जहां पर आधारभूत सुविधाएं और शैक्षणिक सेवा केंद्रीय विद्यालयों के समान या उनसे भी बेहतर होगी। सरकार ने अगस्त 2015 से मार्च 2016 तक ‘आरोग्य राजस्थान’ अभियान भी चलाया था जिसका मकसद सभी निवासियों के स्वास्थ्य से संबंधित ऑनलाइन डाटाबेस तैयार करना था। इससे गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों के इलाज में मदद मिलेगी। भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत 4.5 करोड़ लोग सरकारी-निजी स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों से कैशलेस स्वास्थ्य सेवा का लाभ उठा रहे हैं। सरकार एक करोड़ लोगों के स्वास्थ्य बीमा के प्रीमियम का भुगतान करेगी।

राज्य में वर्षा जल-संचयन योजना के नतीजे कैसे रहे हैं?

देश के कुल सतही जल का केवल 1.16 फीसदी ही हमारे राज्य में पाया जाता है। बारिश के दौरान साल भर में करीब 16.05 अरब घन फुट जल राजस्थान में गिरता है लेकिन संचयन का सही इंतजाम न होने से करीब 4 अरब घन फुट जल व्यर्थ चला जाता है। हमारे राज्य में पेयजल और घरेलू आपूर्ति के लिए 70 फीसदी भूमिगत जल पर ही निर्भर रहना पड़ता है। लेकिन अब भूमिगत जल भी खतरनाक स्तर तक नीचे चला गया है। इस समस्या के समाधान के लिए हमने मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान की शुरुआत की थी जो ग्रामीण इलाकों में जल संरक्षण का अपनी तरह का सबसे बड़ा अभियान है। इस अभियान की तुलना महाराष्ट्र की जलायुक्त शिविर योजना से की जा सकती है जिसकी मदद से पानी की भारी कमी का सामना कर रहे कुछ जिलों को बड़ी राहत मिली थी। हमने 27 जनवरी को जल स्वावलंबन अभियान शुरू किया था जिसके तहत अब तक 91,043 कार्य पूरे भी किए जा चुके हैं। अभियान के दूसरे चरण में राज्य के अन्य 3,500 गांवों में जल संरक्षण का अभियान चलाया जाएगा।

(बिजनेस स्टैंडर्ड को दिए गए साक्षात्कार)