केन्द्रीय मदद में राज्यों की परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाए

मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे ने सुझाव दिया है कि केन्द्रीय मदद के लिए राज्यों के कुल क्षेत्राफल, भौगोलिक परिस्थितियों, प्राकृतिक संसाधनों, अकाल-सूखा जैसी परिस्थितियों एवं सेवा उपलब्ध करवाने में आने वाली लागत आदि बुनियादी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए केन्द्र को सहायता के मापदंड तय करने चाहिए। साथ ही बजट आवंटन में पूरी पारदर्शिता रखी जानी चाहिए।

श्रीमती राजे सोमवार को नई दिल्ली में नीति आयोग में केन्द्र प्रवर्तित योजनाओं के सम्बंध में सुझाव देने के लिए गठित मुख्यमंत्रियों के उपसमूह की दूसरी बैठक को सम्बोधित कर रही थीं। बैठक में उपसमूह के संयोजक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज चैहान के साथ ही नीति आयोग के उपाध्यक्ष श्री अरविन्द पनगडि़या भी मौजूद थे। बैठक में मणिपुर, अरूणाचल प्रदेश, झारखण्ड आदि राज्यों के मुख्यमंत्री एवं जम्मू कश्मीर के वित्त मंत्राी ने भी अपने विचार रखे।

श्रीमती राजे ने केन्द्र से राज्यों को मिलने वाली धनराशि में दस प्रतिशत की वृद्धि करने के लिए प्रधानमंत्राी का आभार व्यक्त किया और सुझाव दिया कि वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर राज्यों को मिलने वाली राशि मंे पहले की तुलना में किसी प्रकार की कमी नहीं हो, इसको भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। उन्होंने राजस्थान सहित अन्य राज्यों को अपनी विशिष्ट परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुरूप योजनाएं बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने का अधिकार प्रदान करने की मांग की।

मुख्यमंत्री ने शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसी राष्ट्रीय महत्व की योजनाओं को जारी रखते हुए केन्द्र प्रवर्तित योजनाओं की संख्या को घटाकर दस तक सीमित करने का सुझाव दिया और इनके क्रियान्वयन के लिए पूरे देश में एक तरह का ‘फंडिंग पैटर्न’ रखने पर जोर दिया और कहा कि हकदारी अधिनियमों पर आधारित केन्द्र प्रवर्तित योजनाओं के लिए सौ प्रतिशत और शेष केन्द्र प्रवर्तित योजनओं के लिए 75:25 प्रतिशत का अनुपात रखा जाना चाहिए। यह धनराशि वित्तीय वर्ष के अन्त में जारी नहीं कर दो किस्तों में अप्रेल और सितम्बर माह में जारी करनी चाहिए, ताकि योजनाओं को सही ढंग से लागू करना संभव हो सके।

श्रीमती राजे ने सुझाव दिया कि केन्द्र द्वारा अगर राष्ट्रीय महत्व की कोई नई योजना बनाई जाती है अथवा ऐसी कोई योजना वर्तमान में क्रियान्वित हो रही है और उनके ‘शेयरिंग पैटर्न एवं उद्देश्यों‘ में यदि कोई परिवर्तन किया जाता है तो राज्यों का सहयोग लेने के लिए नीति आयोग के तहत् बनाये गये इस उपसमूह का एक प्लेटफार्म के रूप में उपयोग करना चाहिए तथा केन्द्र प्रवर्तित योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए बनाये जाने वाली वार्षिक कार्य योजना को पूरी तरह राज्य सरकारों पर छोड़ देना चाहिए।

मुख्यमंत्री ने ‘‘मीनू अप्रोच’’ की चर्चा करते हुए कहा कि सभी राज्यों को अपने हितों के अनुसार केन्द्र प्रवर्तित योजनाओं को चुनने का हक होना चाहिए, ताकि वे अपने विकास के मुद्दों को हल कर सकंे। श्रीमती राजे ने सुझाव दिया कि जब क्षेत्रा विशेष के लिए योजनाओं का निर्माण किया जाता है, तो उन्हें तीन श्रेणियों में बांटा जाना चाहिए। एक, ऐसी योजनाएं जो सभी राज्यों के लिए उपयुक्त हों दूसरे, राज्यों के समूहों के लिए समान योजनाएं, जैसे उत्तर-पूर्व के राज्यों के लिए समान योजना और तीसरे, राज्य विशेष के लिए अलग से योजनाएं, जैसे लाडली, लक्ष्मी योजना आदि।

श्रीमती राजे ने बैठक में कहा कि विकास के कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए केन्द्र एवं राज्यों को मिलकर कार्य करना चाहिए। उन्होंने प्लान एवं नाॅन प्लान के भेद को समाप्त करने का सुझाव भी दिया। श्रीमती राजे ने कहा कि नीति आयोग को एक वृहत ज्ञान भंडार के तौर पर कार्य करना चाहिए, जहां राज्यों के लिए विशाल डाटाबेस एकत्रित किया जाए तथा आयोग द्वारा बिना किसी भेदभाव के राज्यों के मध्य स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना चाहिए।

बैठक में राज्य के मुख्य सचिव श्री सीएस राजन और आयोजना सचिव श्री अखिल अरोड़ा भी मौजूद थे।

नईदिल्ली / जयपुर, 27 अप्रेल 2015