मरीजों के साथ संवाद हो तो नहीं होंगी हिंसा की घटनाएं
चिकित्सा संस्थानों में होने वाली हिंसा को रोकने के लिए जरूरी है कि मेडिकल स्टाफ अस्पताल आने वाले मरीजों एवं उनके परिजनों से उचित संवाद स्थापित करें और मित्रवत व्यवहार बनाएं। एसएमएस हॉस्पिटल जैसे बड़े चिकित्सालयों में प्रतिदिन हजारों की संख्या में मरीज आते हैं, लेकिन जिस समर्पण भाव से चिकित्सक धैर्य के साथ बिना थके मरीजों की सेवा का धर्म निभाते हैं, वह प्रशंसनीय है।
श्रीमती राजे शनिवार को जयपुर में ’चिकित्सा संस्थानों में हिंसा की रोकथाम में न्यायपालिका, कार्यपालिका एवं आमजन की भूमिका’ विषय पर आयोजित सेमिनार को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित कर रही थीं। चिकित्सा संस्थानों में सौहार्द बरकरार रखने एवं स्टाफ को तनाव मुक्त करने के लिए ऐसे विषयों पर चर्चा होना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि चिकित्सा संस्थानों में महिलाएं भी बड़ी संख्या में काम करती हैं, ऐसे में इन संस्थानों में हिंसा होने पर उनके आत्म-विश्वास और कार्य क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ता है। हम सभी का दायित्व है कि हिंसा के कारणों को तलाश कर उनके निवारण के प्रयास करें।
मुख्यमंत्री ने कहा कि कई बार काम की अधिकता के कारण डॉक्टर एवं हॉस्पिटल स्टाफ तनाव में रहता है। चिकित्सा संस्थानों में हिंसा की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सामुदायिक भागीदारी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। उन्होंने कहा कि चिकित्सा संस्थानों में हिंसा को रोकने के लिए राज्य सरकार ने कानून बनाकर उन्हें लागू करने की दिशा में प्रभावी कदम उठाए हैं।
इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एवं मुख्य वक्ता जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि चिकित्सा व्यवसाय से जुड़े लोगों को मरीजों खासकर गरीब लोगों के प्रति पूर्ण संवेदनशीलता रखनी चाहिए। ऐसी व्यवस्था बनाई जाए कि अच्छा इलाज गरीबों की पहुंच में भी हो। उन्होंने कहा कि जहां तक सम्भव हो मरीजों पर अनावश्यक जांच एवं बिना जरूरत के सर्जरी का बोझ नहीं डाला जाना चाहिए। मरीजों के प्रति संवेदनापूर्ण व्यवहार व इलाज की प्रक्रिया में पारदर्शिता से हिंसा की घटनाएं स्वतः कम होने लगेंगी।
राजस्थान हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस के. एस. झवेरी ने कहा कि हिंसा किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। चिकित्सा संस्थानों में हिंसा की घटनाएं केवल एक व्यक्ति ही नहीं बल्कि पूरे तंत्र को प्रभावित करती हैं। इससे दूसरे मरीजों को भी काफी परेशानी उठानी पड़ती है। ऐसे में जरूरी है कि चिकित्सक मरीजों के प्रति सहानुभूति रखें ताकि तनाव का माहौल पैदा ही नहीं हो।
कार्यक्रम की शुरूआत में एसएमएस मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य एवं नियंत्रक डॉ. यूएस अग्रवाल ने अतिथियों का स्वागत किया।
जयपुर, 25 मार्च 2017