सफलता की कहानी-पहाड़ियों में गूंजी जल संरक्षण की कल-कल वन क्षेत्रों में आधुनिक जल तीर्थों का डेरा

मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान की बदौलत पहाड़ों और वन क्षेत्रों का परंपरागत मौलिक वन वैभव लौटने की शुरूआत हो चली है। पर्वतीय अंचलों में सघन हरियाली लाने के प्रयासों के अन्तर्गत जगह-जगह जल भण्डार स्थापित करने और वर्ष भर बरसाती पानी का संग्रहण किए रखने के उद्देश्य से प्रदेश में वन विभाग अग्रणी भूमिका निभाने वाला रहा। विभाग की ओर से इस अभियान के अन्तर्गत खासी पहल करते हुए बहुत बड़ी संख्या में छोटी-बड़ी जल संरचनाओं का निर्माण किया गया, पुराने एनिकटों, जल पहुंच मार्गों और परंपरागत जलाशयों को सुधारा गया, इनकी मरम्मत की गई और इस बात के समन्वित प्रयास किए गए कि घाटियों और वन क्षेत्रों में अधिक से अधिक मात्रा में बरसाती जल संग्रहित हो, भूमि में समाहित होता रहे और साल भर तक पानी की उपलब्धता बनी रहे।

इससे पशु-पक्षियों और सभी प्रकार के वन्य जीवों को आसानी से पेयजल उपलब्ध रहे, पेड़-पौधों को पानी मिलता रहे, घास की हरियाली चादर हमेशा बिछी रहे और वन क्षेत्रों का नैसर्गिक सौंदर्य खिला रहे। इसी सोच को पूरी तरह सार्थक कर दिखाया है इस अभियान ने। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे की इस दूरदर्शी सोच ने जमीनी सफलता प्राप्त करनी आरंभ कर दी है और अब सभी को पक्का विश्वास हो चला है कि यह अभियान जब अपनी परिपूर्णता पा लेगा तब राजस्थान का समूचा परिवेश सुनहरा हो उठेगा और जन-मन पुलकित हो उठेगा। उदयपुर जिले में भी वन विभाग ने मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के अन्तर्गत व्यापक कार्यों को हाथ में लिया और निर्धारित समयावधि में पूर्ण कर दिखाया।

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इसी का परिणाम है कि मामूली बारिश में ही वन क्षेत्रों में नए-पुराने जल भण्डारों का बेहतर स्वरूप सामने आ पाया है।मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान में वन विभाग ने उदयपुर जिले में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और वन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में विभिन्न आकार-प्रकार की जल संरचनाओं का निर्माण किया गया। कई स्थानों पर इनकी उपादेयता अभी से शुरू हो चुकी है। उदयपुर के उप वन संरक्षक(उत्तर) ओमप्रकाश शर्मा बताते हैं कि इससे पौधारोपण, वन संरक्षण एवं संवद्र्धन आदि गतिविधियों को पंख लगेंगे और आने वाले समय में इनके ऎतिहासिक परिणाम सामने आएंगे।

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