जैविक खेती के प्रेरक नंदकिशोर
कोटा जिले की रामगंज मंडी तहसील का छोटा सा गांव हिरपुरा। इस गांव में रहते हैं जैविक खेती करने वाले किसान नंदकिशोर। स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने के बाद इन्होंने नौकरी की बजाय खेती को चुना। इनके अंदर पैसा कमाने की लालसा नहीं थी, लेकिन आस-पास के इलाकों में लोगों के गिरते स्वास्थ्य की कसक इनमें थी। डॉक्टरों से बात की तो, पता चला कि अंधाधुंध कीटनाशकों और उर्वरकों के उपयोग का दुष्प्रभाव खाद्यान्न पर होने लगा है और लोगों की सेहत कमजोर हो रही है। बस, तभी नंदकिशोर ने कीटनाशक और उवर्रक मुक्त खेती यानी जैविक खेती करने का फैसला लिया।
इन्होंने खेती के बचे हुए अवशिष्ट से जैव उर्वरक बनाया और गौमूत्र, नीम, धतूरा का बनाया कीटनाशक। इन्होंने इस प्रयोग को अपने खेतों में किया और जैविक खाद्यान्न का उत्पादन शुरू किया। नंदकिशोर जैविक तरीके से ही धनिया, सरसों, चना, दलहन और गेहूं का उत्पादन ले रहे है। प्रारंभिक वर्षों में उत्पादन कम हुआ, लेकिन नंदकिशोर निराश नहीं हुए। इसी दौरान इन्हें परम्परागत कृषि विकास योजना के बारे में जानकारी ली और कृषि विभाग के सहयोग से इस योजना से जुडे़।
नंदकिशोर का कहना है कि दूसरे की तरह मैं भी चाहता, तो रासायनिक खेती कर सकता था। लेकिन, मैंने परम्परागत खेती को ही चुना। उनका कहना है कि यह सही है कि रासायनिक खाद और कीटनाशकों के उपयोग से पैदावार बढ़ती है, लेकिन इसका नुकसान जमीन, पानी और मानव स्वास्थ्य को उठाना पड़ता है। वे कहते हैं परम्परागत खेती को बचाने के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही परम्परागत कृषि विकास योजना सराहनीय पहल है। ये इस योजना के एलआरपी हैं यानी दूसरे किसानों को जैविक खेती सिखाने वाले ट्रेनर। नंदकिशोर का कहना है कि जैविक खेती करने से न केवल खाद्यान्न गुणवत्ता युक्त और अच्छा होगा बल्कि हमारी पानी, मिट््टी और खुद का स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा।
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