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सूखी धरा पर स्वावलम्बन का सवेरा

राजस्थान का जिक्र होता है तो सामने आता है, रेतीले धोरों के बीच से उगता हुआ सूरज, ऐतिहासिक इमारतें, अपने खेत में बनी झोपड़ियों के बाहर खाट पर बैठकर बाजरे की रोटी, केर सांगरी और सरसों के साग या लहसुन की चटनी के साथ कलेवा करता किसान। साथ ही दिखाई देती हैं ईश्वर से हर साल अच्छी बारिश की प्रार्थना करते यहां के किसानों के ललाट पर खिंची चिंता की लकीरें। राजस्थान के नाम के साथ ही मस्तिष्क में यकायक उभर आती है सूखी धरती-प्यासे लोगों की तस्वीरें। मैं सुराज संकल्प यात्रा के दौरान पूरे राज्य में जब लोगों से मिल रही थी, तब एक समस्या हर जगह मेरे सामने आई – वह थी पानी की कमी। तभी मैंने फैसला कर लिया था कि जो भी हो इस विकराल संकट से उबरने के लिए मिलकर प्रयास करेंगे।

जरा सोचिए उस राज्य के बारे में जिसका कुल क्षेत्रफल दुनिया के कई मुल्कों से बड़ा है, जिसके हिस्से में बड़ा रेगिस्तान आता है जहां दूर-दूर तक पानी की एक बूंद भी नजर नहीं आती। कभी पूरी नहीं होने वाली मृगतृष्णा जैसी कहावत भी शायद राजस्थान के मरूस्थल को देखकर ही बनी होगी। यहां मैं परिवर्तन यात्रा का भी जिक्र करना चाहूंगी जब मैं भीलवाड़ा जिले में जहाजपुर के पास एक गांव से गुजर रही थी। सड़क के किनारे 20-25 महिलाओं का जमघट लगा था। मैंने जिज्ञासावश गाड़ी रूकवाई। पता चला कि ये महिलाएं कुएं से पानी निकालने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रही थीं। महिलाओं की तकलीफ को महसूस करने के लिए मैंने एक बाल्टी ली और कुएं से पानी निकालने लगी। कुआं गहरा था, रस्सी खींचते-खींचते मेरी सांसें फूल गई। बहुत मुश्किल से पानी से भरी बाल्टी बाहर निकाल पाई। तब मैंने उन महिलाओं की तकलीफ महसूस की, जिनका जीवन सिर पर पानी की मटकियां रखकर रोजाना कई किलोमीटर आने-जाने में बीत जाता है। इसलिए उस वक्त 2003 में जब हमारी पहली सरकार बनी तब भी हमने जल चेतना अभियान के माध्यम से लोगों में जल संचय के प्रति जागृति लाने का प्रयास किया था, किंतु 2008 में हमारी सरकार चली गई और राजस्थान वहीं का वहीं ठहर गया। यह ठहराव मुझे सुराज संकल्प यात्रा के दौरान साफ नजर आ रहा था।

पांच वर्ष बाद प्रदेशवासियों ने एक बार फिर हमें सेवा की जिम्मेदारी सौंपी। ऐसे में हमारे सामने जनता के विश्वास पर खरा उतरने की जो चुनौतियां थी, उनमें सबसे बड़ी और गंभीर थी पानी की समस्या। हमने इसे प्राथमिकता से लिया। ढेरों विकल्पों पर विचार करने के बाद एक बात समझ में आई कि तात्कालिक उपाय किसी एक क्षेत्र को तो कुछ समय के लिए राहत दे सकते हैं लेकिन ये कोई स्थाई समाधान नहीं हैं। न ही दूसरों पर आश्रित रहकर हम अपने पूरे प्रदेश का भाग्य बदल सकते। इसके लिए तो हमें स्वयं ही मिलकर सामूहिक प्रयास करने होंगे। ऐसे प्रयास जिनमें 7 करोड़ राजस्थानियों का साथ हो। राजस्थान में ऐसी जल क्रांति की जरूरत थी, जिसमें हर प्रदेशवासी अपना कुछ न कुछ योगदान दे।

मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान इसी विचार मंथन का परिणाम था। धार्मिक संगठन, व्यवसायी-उद्योगपति, पुलिस, आर्मी, सरकारी विभाग, स्वयंसेवी संगठन और मीडिया- सरकार की ओर से शुरू किए गए इस अभियान में साथ आएंगे, शुरू में यह मुश्किल लग रहा था। लेकिन हमें प्रदेश की जनता और अपने आप पर भरोसा था। हम सबका साथ सबका विकास की अवधारणा लेकर आगे बढे तो ‘सरकारी प्रयास’ के तौर पर शुरू हुए इस अभियान ने आमजन के उत्साह और भागीदारी की बदौलत जल्द ही एक जनआंदोलन का रूप ले लिया। सरकारी स्तर पर शुरू हुए एक अभियान में 53 करोड़ रुपये की राशि जन सहयोग में मिल जाए, ऐसे कितने उदाहरण मिलेंगे?

अभियान के पहले चरण में लोगों का अभूतपूर्व सहयोग मिला और पूरा होते-होते तो यह अभियान जल क्रांति में तब्दील हो गया। हमने मानसून से पहले अपने लक्ष्य पूरे किए तो 94 हजार से ज्यादा जल संरचनाओं में से 95 प्रतिशत लबालब हो गई। जहां-जहां भी यह अभियान चला वहां कई जगह 15 फीट तक भू-जल स्तर ऊपर आया है।

पहले चरण की सफलता को देखती हूं तो लगता है कि कल की ही बात है जब झालावाड़ के गर्दनखेड़ी से इसकी शुरूआत हुई हो। तब से लेकर अब तक वक्त तो काफी बह गया लेकिन हमने पानी को सहेज लिया। इन जल संरचनाओं में 11 हजार 170 मिलियन क्यूबिक फीट पानी इकट्ठा हो गया। पानी को सहेजने के लिए पेड़ों की भी जरूरत है। बस इसी बात को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान के दौरान ही वन महोत्सव शुरू किया जो बेहद कामयाब रहा। हमने व्यापक पौधरोपण पर काम शुरू किया और आज 28 लाख से ज्यादा पौधे इन जल संरचनाओं के पास रोप दिए गए।

राजस्थान के कोने-कोने से इस अभियान की सफलता की कई कहानियां सामने आई। सिरोही में एक गांव है, कृष्णगंज। जहां तालाब का जीर्णोद्धार करने के लिए दो हजार लोग एक साथ जुट गए और एक ही दिन में तालाब की सूरत बदल गई। दूसरा उदाहरण नागौर जिले के खोखर गांव का है, जहां इस अभियान में 28 हजार एलोवेरा के पौधे रोप दिए गए। पानी सहेजने के साथ ही आमदनी का स्रोत भी पुख्ता हो गया। सह-अस्तित्व यहां सहयोग के माध्यम से फल-फूल रहा है। ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण हैं।

आज हम पूरे प्रदेश में इस अभियान के दूसरे चरण की शुरूआत कर रहे हैं। लोगों के उत्साह को देखते हुए हमने इस दूसरे चरण को गांवों के साथ-साथ शहरों में भी शुरू करने की योजना बनाई है। राजस्थान के शहरों में भी ऐतिहासिक और पारम्परिक बावड़ियां हैं, इस चरण में उन पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। शहरों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम पर भी इस अभियान के दौरान जोर दिया जाएगा ताकि ज्यादा से ज्यादा पानी जमीन के अंदर जाए और भू-जल स्तर में इजाफा हो। पहले चरण की सफलता ने हमें उत्साह से भर दिया है। अबकी बार हमने 4 हजार 204 गांवों और 66 कस्बों को जल क्रांति से जोड़ने का निश्चय किया है। पौधारोपण में भी 1 करोड़ पौधे रोपने का लक्ष्य हमने तय किया है और मुझे विश्वास है कि हम इस बार भी सफल होंगे। मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन सिर्फ लोगों की प्यास और खेतों को हरा-भरा बनाने का अभियान भर नहीं है। ये प्रयास है अपनी आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित भविष्य देने का, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का, राजस्थान की उन तस्वीरों को भुला देने का जो हमारे सूबे में सूखे का प्रतीक बनी हुई है।

      Smt. Vasundhara Raje. (The writer is Chief Minister, Rajasthan)