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न्याय को अपने द्वार पाकर फूले नहीं समा रहे ग्रामीण बरसों पुराने कामों का हाथों हाथ समाधान दे रहा सुकून

राजसमन्दः न्याय को अपने द्वार पाकर फूले नहीं समा रहे ग्रामीण

बरसों पुराने कामों का हाथों हाथ समाधान दे रहा सुकून

आम ग्रामीणों की समस्याओं के समाधान और ग्राम्य उत्थान के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को लेकर मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे की पहल पर राजस्थान प्रदेश भर में चलाए जा रहे राजस्व लोक अदालत अभियान – न्याय आपके द्वार के शिविर ग्रामीणों के लिए त्वरित न्याय का सुकून दिलाने वाले धाम सिद्ध हो रहे हैं।

समस्याओं से परेशान होकर आने वाले ग्रामीण उम्मीदों के हाथों हाथ पूर्ण हो जाने की खुशी लेकर लौटते हैं और अपने कामों के हो जाने की खुशी के मारे झूमते हुए जाते-जाते शिविर संचालकों और सरकार को धन्यवाद देते हुए कहते हैं – ऊपर करतार, नीचे सरकार। राम भी राजी और राज भी कर रहा है सबको राजी।

राजसमन्द जिले में लोक अदालत अभियान – न्याय आपके द्वार शिविरों में भीषण गर्मी के बावजूद ग्रामीणों को अपने वर्षों पुराने कामों और प्रकरणों के निस्तारण की जो शीतलता अनुभवित हो रही है वह शिविरों में आने वाले ग्रामीणों के चेहरों से अच्छी तरह पढ़ी जा सकती है।

शिविरों में राजस्व दस्तावेजों में शुद्धिकरण से लेकर जमीन-जायदाद और ग्रामीणों तथा गाँव की समस्याओं के त्वरित समाधान का दौर परवान पर है। इन शिविरों में हो रहे काम-काज से प्रभावित होकर ग्रामीणों की इन शिविरों के प्रति दिलचस्पी का ग्राफ दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है।

न्याय आपके द्वार शिविरों का न्याय इन दिनों ग्राम्य परिवेश में मुँह बोलने लगा है और ग्रामीणों में इस बात की खुशी है कि सरकार ने उनके लिए यह अभियान चलाकर उनकी बरसों पुरानी दुश्मनी को पारिवारिक सौहार्द में बदल दिया है, पुराने से पुराने कामों को चन्द घण्टों में निपटारा कर सभी को यथोचित न्याय दिया जा रहा है और सब कुछ इतना सहज और सरल हो गया है कि ये शिविर आशा और विश्वास के धाम के रूप में ही नज़र आने लगे हैं।

राजसमन्द जिले में इन शिविरों के प्रति लोक रुझान बना हुआ है और शिविर संचालकों की मेहनत रंग लाने लगी है। जिला कलक्टर श्री पी.सी. बेरवाल बताते हैं कि राजसमन्द जिले में इन शिविरों को पूर्ण उपादेय बनाने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं और पूर्ववर्ती प्रचार पर जोर दिया जा रहा है। इससे ग्रामीणों में इन शिविरों को लेकर खासा आकर्षण बना हुआ है। शिविरों की उपलब्धियों का ग्राफ दिनों दिन बढ़ता जा रहा है।

जिले में खासकर राजस्व रिकार्ड में नाम दुरस्ती के काम भी काफी संख्या में हो रहे हैं जिससे ग्रामीणों के लिए अपने घर-परिवार के विकास और योजनाओं का लाभ लेने के मामले में बंद पड़े रास्ते खुल रहे हैं। ग्रामीणों को इस बात का सुकून है कि राजस्व रिकार्ड में सही नाम होने से अब उन्हें किसी भी योजना का लाभ या ऋण आदि पाने में कहीं कोई दिक्कत नहीं आएगी अन्यथा अब तक उन्हें केवल नाम दुरस्ती के अभाव में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता रहा है।

नाम दुरस्ती के कई मामले दशकों पुराने आ रहे हैं। राजसमन्द पंचायत समिति अन्तर्गत महासतियों की मादड़ी ग्राम पंचायत में आयोजित शिविर में कई मामले ऎसे आए जिनमें नाम सही किए गए। इन्हीं में एक मामला दीपा का रहा।

राजसमन्द तहसील के घाटी निवासी दीपा पिता गोकल सालवी को 42 साल बाद अपने पिता की पहचान मिली। विवरण के अनुसार आज से 42 वर्ष पहले घाटी गांव के दीपा बा के दादा जेता पिता भेरा का इन्तकाल दर्ज करते समय दीपा के पिता के नाम की जगह दादा का नाम दर्ज हो गया क्योंकि दीपा के पिता गोकल की मृत्यु उसके दादा की मौत से भी पहले हो गई थी। इससे दीपा बा के नाम के आगे पिता के नाम की जगह दादा का नाम राजस्व रिेकार्ड मेंं दर्ज हो गया। इससे राजस्व रिकार्ड में दीपा बा ने अपनी पहचान ही खो दी थी। इस अशुद्धि के चख्लते दीपा बा को किसी भी सरकार सहायता एवं योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा था। इस कारण से दीपा बा को अब तक कई परेशानियों के दौर से गुजरना पड़ा।

उपखण्ड अधिकारी ने पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए राजस्व टीम से दीपा बा के समस्त दस्तावेज हाथों हाथ तैयार करवाए और मोतबिरानों से पूछताछ दीपा पिता जेता बलाई का नाम दीपा पिता गोकल सालवी शुद्ध करवा कर दीपा को हाथों राजस्व प्रतिलिपि अपने हाथों प्रदान की।

अपने नाम की सही पहचान पाकर दीपा बा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने इसे राज का वरदान बताया और अपने दिली उद्गार प्रकट करते हुए कहा – इस राज को भगवान लम्बी उमर दे, यश दे ताकि गरीबों की भलाई के काम लगातार जारी रहें।

यह शिविर घाटी गांव के नाना पिता हीरा के लिए भी खुशियों से भरा रहा। मामले के अनुसार हीरा पिता हेमा बलाई निवासी घाटी ने कोई सन्तान नहीं होने की वजह से लगभग 30 वर्ष पूर्व नाना को गोद रखा था। हीरा पिता हेमा बलाई की मृत्यु के बाद सन् 1995 में हीरा पिता हेमा बलाई के नाम पर दर्ज भूमि के विरासत का नामान्तरणकरण दर्ज करते समय ग्राम पंचायत द्वारा नाना को हीरा का गोद पुत्र मानते हुए नाना के पक्ष में भूमि का अन्तरण किया परन्तु पिता के नाम की जगह नाना के मूल पिता को ही रखा। इससे राजस्व रेकार्ड में नाना पिता जेराम के नाम से भूमि हो गई।

गोद पुत्र होने से नाना ने अपने समस्त पहचान दस्तावेज नाना पिता हीरा सालवी के नाम से बनवा लिए। राजस्व रिकार्ड मेंं दर्ज नाम एवं पहचान दस्तावेज में भिन्नता के कारण नाना को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। उसे किसी भी सरकारी योजना का लाभ मिल पाने में दिक्कतें आ रही थीं। ऊपर से समाज के लोग भी ताने मारते हुए कहते थे कि जिसकी भूमि से कमा खा रहा है उसका नाम ही गँवा दिया।
नाना को न्याय आपके द्वार अभियान के शिविर की जानकारी हल्का पटवारी राजेन्द्रकुमार द्वारा दी गई तो वह खुश होकर शिविर में आया और उपखण्ड अधिकारी श्री राजेन्द्रप्रसाद अग्रवाल के समक्ष नाम शुद्धि के लिए आवेदन किया।

उपखण्ड अधिकारी ने शिविर की राजस्व टीम से सभी प्रकार के दस्तावेज तैयार करवाए और राजस्व रेकार्ड में नाना पिता जेराम की जगह नाना पिता हीरा सालवी शुद्ध कर नाना को राहत प्रदान की। उपखण्ड अधिकारी के हाथों शुद्ध नाम की राजस्व प्रतिलिपि पाकर आनन्दित हो उठे नाना ने सभी का आभार जताया। बाईस साल बाद अपनी सही पचान मिलने से गद्गद हो उठे नाना ने कहा – यह अभियान तो वरदान ही है, सच ही है – ऊपर करतार, नीचे सरकार। राज हो तो ऎसा।

इसी शिविर में घाटी गांव के निवासी कालू पिता केशु सालवी को भी अपनी सही पहचान मिली। राजस्व रिकार्ड में कालू के पिता के नाम की जगह दादा का नाम अंकित था। बाईस साल बाद राजस्व रिकार्ड मेंं कालू पिता जेता बलाई का नाम शुद्ध करवाकर कालु पिता केशु सालवी दर्ज कर हाथों हाथ राहत प्रदान की गई। चन्द मिनटों में अपनी आँखों के सामने यह सब कुछ होते देख खुशी के मारे कालू की आँखें छलक उठी।

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