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सम्मान के साथ सब्सिडी

Vasundhara Raje Cm of Rajasthan

आज के राज्य कल्याणकारी हैं लेकिन आधुनिक राज्य सब्सिडी के संबंध में बांटो और प्रार्थना करो की नीति पर काम नहीं करता। सब्सिडी का वितरण न केवल कुशलतापूर्वक और प्रभावी होना चाहिए बल्कि यह सम्मान सहित भी दी जानी चाहिए। राजस्थान में राशन की दुकानों पर आमतौर पर केवल गेहूं, चीनी और मिट्टी का तेल या केरोसिन यही तीन चीजें उपलब्ध रहती हैं। दुकानें भी महीने में लगभग एक सप्ताह खुलती हैं। सामान खरीदने वालों की बेकद्री होती है और सामान का गबन भी खूब होता है क्योंकि स्टॉकस बिक्री और जरूरतमंद लोगों को बेचे गये सामान की जांच की कोई ऑनलाइन व्यवस्था नहीं है। राजस्थान में अगले एक वर्ष में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत राशन की 24,542 दुकानों में से 5000 को पूरी तरह बदल कर अन्नपूर्णा भंडार के रूप में विकसित किया जायेगा। ये दुकानें न केवल पूरे महीने खुलेंगी और इनमें सरकार की ओर से तय किये गये मूल्य पर 150 तरह के सामान बेचे जाएगे बल्कि सामान घर पहुंचाने यानी होम डिलिवरी की भी सुविधा होगी। यही नहीं, ये दुकानें ऑनलाइन व्यवस्था से भी जुड़ी होंगी।

सरकार की ओर से जारी भामाशाह कार्डधारक को यह विकल्प होगा कि वह सब्सिडी की राशि सीधे अपने बैंक खाते में जमा करवाये या पात्रता राशि की शर्तें पूरी करने पर राशन की दुकान की ओर से भेजा गया एसएमएस मिलने के बाद बिना नकद सब्सिडी वाली वस्तुएं खरीदें। अजमेर में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू की गयी इस योजना में ग्राहकों ने 65:35 के अनुपात में गैर नकद बनाम नकद सब्सिडी का विकल्प अपनाया। लेकिन आने वाले समय में यह स्थिति बदल भी सकती है।

भारत में सब्सिडी पर बहस का इतिहास काफी पुराना है। संविधान बनाने वाली संविधान सभा के 299 सदस्यों में राजनीतिक स्वतंत्रता के लक्ष्य वाले मूल अधिकारों और सामाजिक व आर्थिक लोकतंत्र के लक्ष्य वाले नीति निर्देशक तत्वों के मुद्दे पर गंभीर बहसें हुईं। जब यह तय हुआ कि नीति निर्देशक तत्व के पीछे कानूनी ताकत नहीं होगी यानी इन्हें मानने के लिए बाध्यता नहीं होगी तो कई सदस्य काफी निराश भी हुए। मेरी राय से यह दिमाग और दिल के द्वंद्व की तरह है, क्योंकि एकदम से यह संभव नहीं था कि नागरिकों को जो चाहिए वह सब मिल जाये। बाबा साहब अंबेडकर ने भी संविधान का प्रस्ताव रखते हुए अपने भाषण में कहा था , यह आलोचना गलत है कि बिना बाध्यता के नीति निर्देशक तत्व महज पवित्र घोषणाएं हैं। सत्ता पर बैठने वाला इनको नजरंदाज नहीं कर सकता। भले ही इनके उल्लंघन पर उसे न्यायालय में जवाबदेह नहीं होना पड़ेगा लेकिन खुद को चुनने वाली जनता के प्रति तो वह जवाबदेह होगा ही।

और बाबा साहब बिल्कुल सही थे। सन् 1952 से शुरू हुई चुनावी प्रक्रिया ने हर बार यह सिद्ध किया है कि कोई भी राजनीतिक दल नीति निर्देशक तत्वों में शामिल सामाजिक और आर्थिक पहलुओं की अनदेखी नहीं कर सकता। अहम यह नहीं है कि सरकार कितने पैसे खर्च कर रही है बल्कि अहम यह है कि इसका इस्तेमाल कैसे हो रहा है। यदि खर्च की जा रही राशि का फायदा जरूरतमंदों को नहीं मिलता है तो यह न केवल बरबादी है बल्कि भावी पीढ़ी के हक में सेंध लगाने के समान है।

राजस्थान स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड पर 80 हजार करोड़ रुपये के कर्ज का बड़ा हिस्सा सब्सिडी की बरबादी को दर्शाता है। इसका इस्तेमाल सड़कों, शिक्षा या कौशल विकास के लिए हो सकता था। देश के एक पूर्व प्रधानमंत्री ने भी कहा था कि सरकार के खर्च का केवल 15 प्रतिशत ही जरूरतमंदों तक पहुंचता है। यह अलग बात है कि पिछली केंद्र सरकार को इसका अहसास नहीं हुआ और उसने सबको हतप्रभ करते हुए लोकसभा चुनाव से ठीक पहले रसोई गैस सिलेंडर की सब्सिडी को आधार कार्ड से न जोड़ने का फैसला किया।

नयी सरकार ने रसोई गैस सिलेंडर पर दी जाने वाली सब्सिडी को आधार कार्ड से जोड़ने का अच्छा फैसला किया है। इससे सालाना करीब 10 हजार करोड़ रुपये की बचत होगी। नकद बनाम गैर नकद सब्सिडी के असर को लेकर दो विचारधाराएं जरूर हैं लेकिन मैक्सिको, ब्राजील और अमरीका के अनुभवों से पता चलता है कि नकद हस्तांतरण में चोरी की आशंका कम होती है और सब्सिडी वाले खर्च को लेकर पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा जिम्मेदार होती हैं। हालांकि बदलती हुई आर्थिक परिस्थितियों में प्राथमिकताएं भी बदलती रहती हैं। नीति निर्धारकों को न केवल नागरिकों के हित के हिसाब से निर्देशित होना चाहिए बल्कि साथ-साथ नकद और गैर नकद सब्सिडी देने के लिए आधुनिक कल्याणकारी राज्य की बायोमेट्रिक पहचान जैसे उपायों का इस्तेमाल भी करना चाहिए।

सब्सिडी का सबसे बड़ा शत्रु है गैर जरूरतमंदों को इसका फायदा। राजस्थान सरकार के एकीकृत और नकल न किये जा सकने वाले भामाशाह डेटा बेस स्वास्थ्य बीमा, सरकारी राशन, शिक्षा, छात्रवृत्तियों और मनरेगा के लिए भुगतान जैसी तमाम वित्तीय समावेशन वाली योजनाओं के लिए लाभप्रद है, क्योंकि हर परिवार को नकद और गैर नकद हस्तांतरण के बारे में एक एसएमएस आयेगा, जो उनके कार्ड से जुड़ा होगा।

राज्य सरकार ने इस योजना से 1.35 करोड़ परिवारों में से 88 लाख परिवारों को जोड़ लिया है और दो वर्ष में सभी पात्र परिवार इस योजना से जुड़ जाएंगे। भविष्य में केंद्र की महत्वाकांक्षी जैम त्रयी योजना (जन-धन, आधार और मोबाइल फोन) के साथ कार्ड की बजाय यह योजना फोन से जुड़ जाएगी। यह तय है कि आने वाले कुछ दशकों में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का मौजूदा 16 प्रतिशत सरकारी खर्च कई गुना बढ़ेगा। तुलनात्मक नजरिए से देखें तो डेनमार्क में ये 57 प्रतिशत, अमरीका में 40 प्रतिशत और ब्राजील में 25 प्रतिशत है। हालांकि, भारत जैसे ज्यादा आबादी वाले देश देश में सब्सिडी के साथ-साथ सामाजिक न्याय के दूसरे उपायों जैसे बुनियादी ढांचे का विकास, शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार के मध्य उचित संतुलन होना चाहिए।

सरकार चलाने में संतुलन रखने वाली बुद्धि का प्रयोग कोई नयी बात नहीं। विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी के खंडहर इसकी मिसाल हैं, जहां हर इमारत की नींव पर तीन पशुओं, बाघ (साहस के लिए), घोड़ा (रफ्तार के लिए) और हाथी (स्थिरता के लिए) की आकृति बनी हुई है। इसमें उन राज्य सरकारों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश छिपा है, जो अक्सर निर्भीकता, नवीनता और प्रयोग के बजाय यथास्थिति को तरजीह देते हैं। संविधान के नीति निर्देशक तत्वों के श्रेष्ठ नतीजों के लिए मौलिक अधिकारों में भारत की प्रगति को बेहतरीन बनाने के लिए केंद्र ने आजादी यानी 1947 के बाद से राज्य सरकारों को खुलापन दिया है। प्रभावी शुरुआत करने के लिए सब्सिडी के सक्षम और प्रभावी वितरण से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता। -लेखिका राजस्थान की मुख्यमंत्री हैं।

      (लेखिका राजस्थान की मुख्यमंत्री हैं)